संदेश
ड्यूटी की ब्यूटी - लघुकथा - प्रमोद कुमार
पिछले चुनाव का यात्रा वृतांत सुनकर ही मिश्रा जी ने इस बार संपन्न होनेवाले पंचायत चुनाव में पिताजी का नाम चुनाव ड्यूटी से हटवाने का फ़ैस…
आओ हम मतदान करें - कविता - प्रभात पांडे
शिक्षा, दीक्षा और चिकित्सा इनके साधन अब बटे बराबर, असन, वसन, आवास सुलभ हों साँसें पलें न फुटपाथों पर। पूर्ण व्यवस्था बने समुज्ज्वल …
लोकतंत्र का महापर्व - कविता - रमाकान्त चौधरी
अपने मत का उचित प्रयोग करके हमें दिखाना है, लोकतंत्र के महापर्व को मिलकर सफल बनाना है। सरकार बनाने की ख़ातिर हमको ये अधिकार मिला, मत ह…
मताधिकार - कविता - बृज उमराव
जागरूक होवे जन मानस, मताधिकार करे आग़ाज़। क़ानूनी अधिकार आपका, ख़ुद से ही करिए शुरुआत।। किसी की सोंच न हावी होवे, सोंच विचार करें मतदान। भ…
हे मतदाता - कविता - अंकुर सिंह
हे मतदाता!, हे राष्ट्रनिर्माता! दारू मुर्गे पर ना बिक जाना। प्रत्याशी को समझ परख कर, मतदान ज़रूर तुम कर आना।। लोकतंत्र के तुम हो आधार, …
नेताजी का चुनावी घोषणा-पत्र - हास्य व्यंग्य लेख - श्याम "राज"
भाइयों और बहनों........ हमने तो वो समय भी देखा है जब आदमी अंधेरा होने के बाद अपने घर से बाहर नहीं निकलता था। भाई-भाई पर शक करता था और …
बिहार है विकास चाहिए - कविता - मो. जमील
यह बिहार है न कि कोई ताल तलैया, ऐसा प्रतीत होता है, बिहार में विकास नहीं सिर्फ, कमल पुहुप और बाण ही दिखते हैं, बाण का जमाना अब तो …
पुनः धर्मयुद्ध - कविता - मनोज यादव
बस काल-काल में अंतर है, और समय में थोड़ा परिवर्तन है। नही तो द्युत सभा तो आज भी जारी, और सत्ता का भरपूर समर्थन है। धृतराष्ट्र लाख मिलें…
इरादा बदलाव का - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"
बदहाल सूरत को बदल डालिए। सूबे की हालत को बदल डालिए। उग्र है सारी ख़िलक़त आघात से, अंध बादशाहत को बदल डालिए। हो रहा परेशान आवाम…
बगावत के बादशाह - हास्य व्यंग्य लेख - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
भई चुनावी बयार में तो अच्छे-अच्छे बहक जाते हैं हम तो पहले से ही बगावती बादशाह हैं शुभचिंतक तो जनता के ही है ना, कुर्सी तो एक बहाना है …
बयानबाजी का दौर - हास्य व्यंग्य (आलेख) - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
बयान बाजियों का दौर भी अपना एक लॉलीपॉप लेकर आता है, जिसमें घोर तपस्वी अपनी-अपनी गुफाओं से निकलकर आ जाते हैं अपने चमत्कृत कर्म से भावों…
आज़ादी - लघुकथा - सुनीता रानी राठौर
राजू अपने पिता के साथ उदास बैठा था। घर के आसपास पूरे गाँव में बाढ़ का पानी भरा था। चार महीने से कोरोना के वजह से स्कूल की छुट्टी थी…
नेता जी - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
अब जनता भी होशियार हो गई तुम सोच समझ लो नेताजी। अब झांसे में ना आएगी, यह गणित लगा लो नेताजी । जब जब चुनाव का बिगुल बजा, तुम …
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