संदेश
आत्म संवाद - कविता - अंजू बिजारणियां
ये जवानी का दौर, दूसरी ओर सफलता प्राप्ति का शोर। पड़ रहा मुझ पर मेरा ही ज़ोर। अपने आप में रहना भी चाहूँ, निकलना भी चाहूँ, छाया कोहरा चा…
जीवन है अनमोल जगत में - कविता - रमेश चन्द्र यादव
जीवन है अनमोल जगत में, संभल कर क़दम उठाना रे। ग़लती कोई हो जाए एकबार, तो उसको ना दोहराना रे। मत सोचो तुम हो अकेले, नहीं कोई है साथ तुम्…
ज़िंदगी एक क्रिकेट - कविता - पारो शैवलिनी
ज़िंदगी के पिच पर भावनाओं का छक्का मारा था मैंने सोचा था– जीत लूँगा मंज़िल रूपी मैच को मगर, दूर खड़े आवश्यकताओ के सिली प्वाइंट पर खड़े ए…
इस जीवन के हर पृष्ठ पर - नवगीत - सुशील शर्मा
इस जीवन के हर पृष्ठ पर लिखे हुए उर के स्पंदन। तेरे अधरों की वँशी पर मेरे गान की लय होती हर पल हर क्षण तड़प वेदना भय बोती सकल आस के बंध…
क्या ज़िंदगी थी - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
कुछ ज़मीं, कुछ आसमाँ कुछ मुस्कुराहटें और कुछ सामाँ कुछेक सिक्के, कुछ घूँट आब क्या ज़िंदगी थी जनाब। ख़ुशियों की... दस्तक की दरकार नासमझ-स…
जीवन - मुक्तक - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
अरे! 'अंशुमाली' लघु जीवन फिर भी चलते जाना है। नंद नाले कंटक वन गह्वर में भी बढ़ते जाना है। जीवन के पन बीत रहे हैं फिर भी संबल …
समझ नहीं सका - कविता - प्रवीन 'पथिक'
समझ नहीं सका मैं, रिश्तों की बुनियाद का आधार! ऑंखों से बहता प्रेम या अंतःकरण से उमड़ता सागर। अन्यमनस्क सा सोचता हूॅं; प्रेम अभिव्यक्ति…
जीवन की फिर नई किरण है - कविता - राजू वर्मा
जीवन की फिर नई किरण है, कुछ कामयाबी के सपने हैं, हर दिन संघर्ष भरा है, राहों में कुछ अपने हैं, गिर कर चलना चलकर गिरना, जीवन की बस राह …
कई रास्ते - कविता - प्रवीन 'पथिक'
कई रास्ते फूटते हैं; जीवन के उत्स से। कहीं कोयल मधुर राग छेड़ती है, तो कहीं घुप्प अंधेरा। कहीं झरनों का सुंदर संगीत है; तो कहीं झिंगुर…
यह दीप है - कविता - सेवाराम
यह दीप है भावनाओं का गीत है, अगर इसका बोध हो गया तो आत्मीय फ़तह है, हयात के द्वंद के पथ पर चल के अपने जीवन की सार्थकता समझ के कर ली संक…
जीवन का गणित - कविता - आर॰ सी॰ यादव
उलझा हुआ गणित जीवन का दो-दो चार नहीं हो पाते। कर्म बिना जीवन का सुख कभी कहाँ, किसको मिल जाते॥ टूट गए सब दिल के अरमाँ सपने तितर-बितर हो…
दिव्या - कविता - प्रवीन 'पथिक'
अंधेरे के सिवा, जीवन में कुछ नहीं है। सुख, आनंद, आह्लाद, सौंदर्यता कुछ भी तो नहीं है। भय मिश्रित आशंका, बेचैनी और अंतर्द्वंद से अच्छाद…
पतंग की डोर - कविता - तेज नारायण राय
बचपन में पतंग उड़ाते जब कट जाती थी पतंग की डोर और जा गिरती थी गाँव की सीमा से दूर किसी पेड़ की फुनगी पर तब पतंग के पीछे दोस्तों …
नहीं चाहता आसाँ हो जीवन - कविता - मयंक द्विवेदी
चाहे सौभाग्य स्वयं हो द्वार खडे, चाहे कर्ता भी हो भूल पड़े, नहीं चाहता आसाँ हो जीवन, चाहे मग में हो शूल गढ़े। जो पत्थर होऊँ तो नींव मिल…
आशंका - कविता - प्रवीन 'पथिक'
एक घना अँधेरा! मेरी तरफ़ आता है मुँह बाए, और ढक देता सम्पूर्ण जीवन को; अपनी कालिमा से। किसी सुरंगमय कंदराओं में से, सिसकने की आवाज़ आती…
तो ज़िंदगी है - कविता - ऋचा सिंह
धूप में खोजे है छाँव, छाँव में गुमसुम-सी है ये अनमनी जो है तो ज़िंदगी है। रात में करवट जो बदले भोर भए उम्मीद-सी है, ये आस जो है तो ज़िं…
जीवन क्या है - कविता - रूशदा नाज़
माँ घर की ज़िम्मेदारियाँ निभाती देर रात वह थक कर सोती तब समझ आया जीवन क्या है पिता घर से दूर रहता, या सुबह जाता शाम आता उसके संघर्षों …
अप्प दीपो भवः - कविता - संजय राजभर 'समित'
छोटी सी है ज़िंदगी सूझबूझ से चल बेतहाशा मत भाग किसी के पीछे पता चला वो अँधेरे में था तू भी– धार्मिक सच जो कल तक सच था उसे विज्ञान आज झू…
जिया ही नहीं - कविता - प्रवीन 'पथिक'
ज़िंदगी में बहुत कुछ मिल सकता था, लिया ही नहीं! चाहता था खुल कर जीऊँ, पर जिया ही नहीं। घुट-घुट कर जीता रहा, इच्छाओं को दबा के। कोई मिल…
जीवन क्या है? - लेख - श्याम नन्दन पाण्डेय
कुछ शब्दों, चीज़ों या विषयों को परिभाषित करना मुश्किल है जैसे प्रेम, मित्रता और जीवन। इन शब्दों का कोई सार्वभौम परिभाषा नहीं है। इस ले…
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