संदेश
पतंग की डोर - कविता - तेज नारायण राय
बचपन में पतंग उड़ाते जब कट जाती थी पतंग की डोर और जा गिरती थी गाँव की सीमा से दूर किसी पेड़ की फुनगी पर तब पतंग के पीछे दोस्तों …
डोरी से बंधी आज़ाद पतंग - कविता - निवेदिता
सोच रही हूँ, क्यों ना आज अपना परिचय दे दूँ। मैं पतंग, हाँ वही आसमान में उड़ने वाली, ऊँचाइयों को छूने वाली। सोच रही हूँ क्यों न आज हक़ीक़…
आत्मीयता की डोर - कविता - कर्मवीर सिरोवा 'क्रश'
तुझसे हैं मेरे बख़्त का रिश्ता, तू बस सा गया हैं मेरे दिल-ओ-तसब्बुरात में, प्रकति के घर जब सुबह पैदा होती हैं तेरे प्रेम के आँचल में क…
पतंगे - कविता - रमाकांत सोनी
नील गगन में उड़े पतंगे लहराती बलखाती सी, रंग-बिरंगी सुंदर-सुंदर अठखेलियाँ दिखाती सी। वो डोर से बँधी हुई आसमान छू पाती है, हर्ष उमंग …
पतंग - बाल कविता - डॉ॰ राजेश पुरोहित
आदमी की ज़िंदगी पतंग सी कभी रंग बिरंगी चमकती, डोर कट जाए रिश्तों की तो न जाने कहाँ-कहाँ भटकती। लक्ष्य को पाने ऊँचाइयाँ छू लेती कभी हिचक…
पतंग की उड़ान - कविता - अंकुर सिंह
पतंग भरती जैसे उड़ान, बढ़ेगा वैसे मेरा मान। सफलता मेरे पंख होंगे, खुला होगा मेरा आसमाँ।। इरादे मेरे बुलंद होंगे, लेता आज मैं ये सौगंध।…
पतंग और डोर - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
पौष मास नववर्ष मुदित मन, पर्व मकर संक्रान्ति मनाएँ। खुशियों के मकरन्द बाँटकर, जीवन व्योम पतंग उड़ाएँ। सतरंग चार…
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