संदेश
मंज़िल पर हूँ - नज़्म - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
मंज़िल पर हूँ, पैरो को अब और चलने की ज़रूरत ना रही, दिल में इस तरह से बसे हो कि मन्दिर में तेरी मूरत ना रही। फ़लक़, पंछी, ये ख़ामोश कहकशाँ,…
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी - गीत - प्रशान्त 'अरहत'
पाकिस्तानी क़व्वाल और गीतकार फैज़ अली फैज़ साहब के गीत "दिल-ए-उम्मीद तोड़ा है किसी ने" पर आधारित। अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊ…
मंज़िल करे पुकार - गीत - प्रशान्त 'अरहत'
मंज़िल करे पुकार ओ राही! प्रतिपल कदम बढ़ाए चल। चलना तेरा काम वक़्त से हरदम हाथ मिलाए चल। जो भी सुखद-दुखद घटनाएँ उनको अभी भुलाए चल। जो भी…
क़दम-क़दम - कविता - ऊर्मि शर्मा
फ़ुर्सते-पाबन्दीयाँ रास्ते-पगडंडियाँ। क्षितिज को छूती मंज़िलें, हौसलो के इम्तिहान। हर तरफ़ बिछा कुहासा, हादसे क़दम-क़दम। फूल काँटें दरमिय…
राह नहीं मंज़िल - कविता - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
बात पुरानी कुछ नई नहीं है, खरी-खरी, छुई-मुई नहीं है। राह मिली पथरीली हरदम, फिर भी घटा नहीं है दमख़म। कतई कभी न छोड़ी ज़मीन, बनी ज़िंदगी…
मंज़िल पुकार रही है - कविता - आशीष कुमार
बना दो क़दम के निशान, कि मंज़िल पुकार रही है। थाम लो हाथों में हाथ, कि वक़्त की पुकार यही है। बनकर मुसाफ़िर चलते जाना, मंज़िल से पहले रुक न…
मंज़िल पाना है - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
बढ़ो सदा जीवन के पथ पर, हमें सुपथ मंज़िल पाना है। सदाचार संस्कार लेप मन, सत्य रथी रथ पर चढ़ना है। त्याग तपोबल न्याय निष्ठ बन, आगत …
लेकिन क्या मैं सोचता रह जाऊँगा - कविता - गोपाल मोहन मिश्र
रात में सूरज को तरसता हूँ, दिन में धूप से तड़पता हूँ, आख़िर क्या होगा मेरा...? मै हूँ कहाँ इस यात्रा में...? सोचता हूँ तो पाया! मुझे ना…
मिलेगी एक दिन मंज़िल - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन तक़ती : 1222 1222 1222 1222 मिलेगी एक दिन मंज़िल अभी यह आस बाक़ी है। अजी मकसद अभी तो ज़िंदगी क…
मंजिल का पता पूछो धार से - कविता - उमाशंकर राव "उरेंदु"
मंजिल वो नहीं होती जहाँ हम जाना चाहते हैं मंजिल वो होती है जहाँ वह हमें ले जाती है। यह अलग बात है कि हम मंजिल को देखते हैं और मंजि…
एक दिन मंज़िल मिल जाएगी - कविता - आलोक कौशिक
ख़ुशियों का उजाला ज़रूर होगा बेबसी की ये रात बीत जाएगी कट जाएगा सफ़र संघर्ष का एक दिन मंज़िल मिल जाएगी खो गया है जो राह-ए-सफ़र …
मंजिलें - मुक्त - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जीवन्त तक बढ़ते कदम, चाहत स्वयं की मंजिलें, नित बेलगाम इच्छाएँ, निरत कुछ भी कर गुजरने, ख़ो मति विवेक नित अपने, र…
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