संदेश
उर्मिला का वियोग - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
तुम गए हो दूर जो, प्राण अब तड़प रहे, मेरे हिय में शूल-सा, दर्द है कसक रहे। तुम बिन ये प्रहर सभी, शून्य से प्रतीत हों, नीरहीन मेघ से, न…
राम मेरा भी रोया होगा - कविता - राघवेंद्र सिंह | कौशल्या विलाप कविता
एक दिवस रनिवास कोठरी, बैठ अभागन सोच रही थी। विह्वलता के दीप तले वह, स्वयं अश्रु को पोंछ रही थी। सोच रही थी हाय विधाता! तूने यह विधि ठा…
श्रीराम वनवास - मुक्तक - संजय परगाँई
सुनो अवधेश तन मन में, सदा रघुकुल धरोगे तुम, दिया जो था वचन तुमने, उसे पूरा करोगे तुम। यही बस माँगती तुमसे, कहे ये आज कैकेयी, भरत को सौ…
तुलसीदास सच-सच बतलाना! - कविता - राघवेंद्र सिंह
हे कवि शिरोमणि तुलसीदास! हे राम चरित के सृजनकार! कर जोड़ विनय करता तुमसे, जिज्ञासु मन लिए प्रश्नहार। लिख रघुवर का वह बाल्यकाल, जब लिखा…
राम जन्म - कविता - प्रवल राणा 'प्रवल'
राम जन्म की बेला में मन खो गया। प्रभु चरणों का दर्शन मुझको हो गया॥ माँ कौशल्या ने जब उपकार किया, प्रभु ने देखो अवधपुरी अवतार लिया। दशर…
रघुपति से जीत न पाऊँगा - कविता - अनूप अंबर
मेघनाद उदास बहुत है, रघुपति से जीत न पाऊँगा, पिता वचन स्वीकार मुझे, लड़ते-लड़ते मर जाऊँगा। इंद्र न मुझसे जीत सका, फिर तपस्वी कैसे जीत …
शबरी के मन मध्य भक्ति दीप जलता है - सवैया छंद - देवेश बाजपेयी
शबरी के मन मध्य भक्ति दीप जलता है, जिससे प्रकाश टेर-टेर बीन लाती है। काल को चुनौती वह देती गुरु आज्ञा पाए, घोर अंधकार में सबेर बीन लात…
भक्त के वश में हैं भगवान - कविता - गायत्री शर्मा गुँजन
माता शबरी के अटूट प्रेम और निश्छल भक्ति की अनूठी मिसाल! एक छोटा सा प्रयास किया है इस काव्य के माध्यम से यह बताने का कि भक्ति गर्व और उ…
राम युगों युगों में आते है - कविता - मयंक द्विवेदी
राम युगों युगों में आते है मर्यादा की बन परिभाषा आदर्शो की बन पराकाष्ठा राम युगो युगो में आते है। पिता के वचन निभाने कैकयी के स्वपन्न …
राम का वन गमन - सरसी छंद - महेन्द्र सिंह राज
ज्ञात हुआ जब सीता जी को, बन को जाते राम। चरणों में सर रखकर बोली, सुनिए प्रभु सुखधाम।। अपने चरणों की दासी को, ले लो अपने साथ। पत्नि धर…
रामायण कथा के रोचक अंश - वृत्तांत - ज्योति सिन्हा
सभी धर्मों में सबसे बड़ा धर्म है... "त्याग" नाम का धर्म! आइए इस त्याग को रामायण की एक कथा में ढूँढते हैं, बहुत आसानी से मिल …
कैकेयी के राम - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
कितना सरल है कैकेयी के चरित्र को परिभाषित करना, स्वार्थी, लालची, पतिहंता कहना, लांछन लगाना पुत्रमोही को अपमानित उपेक्षित करना। बड़ा सरल…
सीता हरण - कविता - रमाकांत सोनी
पंचवटी में जा राघव ने नंदन कुटी बना डाली, ऋषि मुनि साधु-संतों की होने लगी थी रखवाली, शूर्पणखा रावण की बहना वन विहार करने आई, राम लख…
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