संदेश
हैं बहुत नाज़ुक रिश्ते - कविता - सीमा शर्मा 'तमन्ना'
भाव अनन्त भर भीतर मन के ज़ुबान पर मिठास रखा कीजिए। हैं रिश्ते ये ज़रा नाज़ुक हुज़ूर! इस तरह इन्हें बचाकर रखा कीजिए॥ ये नहीं जेबों में र…
सम्बन्ध और वृक्ष - कविता - अभिषेक शुक्ल
सम्बन्ध और वृक्ष काफ़ी समान हैं एक हद तक! विश्वास रूपी धरातल, प्रेम रूपी जल, और सत्य रूपी रौशनी! पोषण करती है इस वृक्ष का पर्याप्त पोष…
संबंधों की सार्थकता - कविता - प्रवीन 'पथिक'
कथा की प्रासंगिकता, कथ्य के प्रभावशाली होेने से है। शब्दों का जीवंतता, गहरे भाव बोध से होता है। जीवन की अर्थग्राह्यता, मुक्ति की दिशा …
अपनापन - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
खोता जीवन सुख अपनापन, वह स्वार्थ तिमिर खो जाता है। कहँ वासन्तिक मधुमास मिलन, पतझड़ अहसास दिलाता है। भौतिक सुख साधन लिप्त मनुज,अपनापन क…
तेल की कमी में बाती - कविता - रोहित सैनी
जैसे मौत आती है; और... "है" का "था" हो जाता है! दीप आँधियों में एकदम से बुझ जाते हैं! तेल की कमी में बाती... टिमटि…
पति-पत्नी - कविता - विजय कुमार सिन्हा
दो अनजाने परिवारों के बच्चे बंधते हैं एक साथ परिणय सूत्र में परिणय सूत्र में बंधते ही हो जाते हैं जीवन भर के लिए एक दूसरे के लिए। और …
साला का महत्व - कविता - विजय कुमार सिन्हा
जिस घर में मेरा विवाह तय हुआ उस घर में पहले से था एक जमाई रिश्ते में था वह मेरा भाई। एक दिन मैंने उससे कहा– तुम तो अनुभवी हो ससुराल …
नमक - कहानी - कुमुद शर्मा 'काशवी'
नलिनी एक सुघड़, सुशील घर व बाहर के कामों में पारंगत एक समझदार पढ़ी लिखी संयुक्त परिवार में पली बढ़ी लड़की थी। परिवार भी ऐसा जहाँ सभी स…
रिश्तों की डोर - कविता - विजय कुमार सिन्हा
जन्म से मृत्यु तक, इंसान बँधा है रिश्तों की डोर में। रिश्तों की डोर बहुआयामी होती है। मात-पिता, भाई-बहन, दादा दादी इन रिश्तों को ख़ून …
आत्मीयता की डोर - कविता - कर्मवीर सिरोवा 'क्रश'
तुझसे हैं मेरे बख़्त का रिश्ता, तू बस सा गया हैं मेरे दिल-ओ-तसब्बुरात में, प्रकति के घर जब सुबह पैदा होती हैं तेरे प्रेम के आँचल में क…
मुखाग्नि - कहानी - डॉ॰ वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज
बंसीलाल अब एकदम बूढ़े हो चले थे। अपने से चलना-फिरना भी अब मुश्किल-सा हो रहा था। पाँच-पाँच बेटे पर सभी अपने-अपने मतलब के। पत्नी पहले ही…
रिश्ते - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
कोमल किसलय चारु ललित हिय, सदाचार अपनापन जानो। देश काल सुपात्र परिधि मध्य, रिश्ते मृदु दृढ़तम नित जानो। सुप्रभात किरण मन मधुर मनोहर…
रिश्ते लगे बिखरने - कविता - अर्चना कोहली
अपनेपन की चादर से बुने रिश्ते लगे बिखरने, ईर्ष्या-कलह के आवरण में ख़ुद को लगे भूलने। सर्द रातों में जो अलाव के चहुँ और होता था घेरा, ना…
रिश्ते - कविता - आदेश आर्य 'बसन्त'
दौलत से रिश्तो को तौल कर, क्या कोई ख़ुश रह पाया है। रिश्तो में ही है ख़ुशियाँ सारी, रिश्तो में ही संसार समाया है। कुछ बाहर के लोगों क…
बिखरते रिश्ते - कविता - डॉ॰ राजेश पुरोहित
ख़ुदगर्ज़ी के आलम में, सारे रिश्ते बिखर गए। धन दौलत के झूठे क़िस्से, वो जाने किधर गए।। प्यार की दौलत ही सच थी, एक दुनिया में मगर। आदमी ने…
कुछ जाने अनजाने रिश्ते - कविता - रमाकांत सोनी
कुछ जाने अनजाने रिश्ते, कुछ दिल से पहचाने रिश्ते। कुछ कुदरत ने हमें दिया है, कुछ हमको निभाने रिश्ते। रिश्तो की पावन डगर पर, संभल स…
आख़िरी रिश्ता - कविता - केवल जीत सिंह
आदमी का आख़िरी रिश्ता उन पेड़ की लकड़ी से होता है जिनकी आग़ोश में, जलकर इस तन को राख होना है। रिश्ता निभाने का सलीक़ा तो उन पेड़ की लकड़…
वो रिश्ता जो छोड़ आया था - संस्मरण - भगवत पटेल
ज़िन्दगी बहुत बोलती है हमेशा कुछ न कुछ पाने की ख़्वाहिश में जितना पाती नहीं उतना छोड़ देती। चूंकि मेरा सेवा निवृत्त का समय नज़दीक है और …
रिश्तों का रुका विस्तार - गीत - रश्मि प्रभाकर
रिश्तों का रुका विस्तार, रिश्ते हो गए व्यापार, रिश्ते अब सच्चाई का प्रमाण माँगने लगे। रिश्तों में नहीं है जान, रिश्तो का रहा ना मान, र…
रिश्तों की अहमियत - कविता - विनय "विनम्र"
कुछ रिश्ते तुम कुछ हम सम्हालते हैं, आओ इन रिश्तों को बच्चों की तरह पालते हैं। दुश्वारियों की आँधियों में बिजलियों का शोर है, एक रास्ता…
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