संदेश
मैं घोड़ी क्या चढ़ गया - कविता - मयंक द्विवेदी
मैं घोड़ी क्या चढ़ गया रे मेरे दिन फिर गए ऐसे राहु-केतु वक्री हो गए सारे फन फुला के बैठे। मैं घोड़ी क्या... सुनो सुनो की सुन-सुन कर अब का…
नया आँचल नई मुस्कान - कविता - विजय कुमार सिन्हा
कलाइयों में भरी हुई चूड़ियाँ पाँवों में पाज़ेब ललाट पर बड़ी सी बिंदिया माँग में सिंदूर बदन पे भरे हुए आभूषण माँ-पापा के द्वारा पसंद…
एहसास - कहानी - आशीष कुमार
मल्होत्रा परिवार की लाडली पद्मिनी उर्फ़ पम्मी ख़ुश-मिज़ाज लड़की थी। सुंदरता ऐसी की चाँद भी शरमा जाए। गोल मटोल मासूम सा चेहरा। आँखों से जै…
दुल्हन - कविता - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'
मेहँदी भरे हाथ और किए सोलह शृंगार, मन में उथल पुथल कि जाने कैसा होगा ससुराल। नाज़ुक मन है, नाज़ुक तन है, और है दिल में भाव अपार, क्या सा…
बिदाई : एक पिता का दर्द - कविता - जॉयस जया रौनियार
नन्ही सी बगिया का फूल आज होके चली पराई, देख पिता कि मन और आँख भर आई, पर होठो पे बस मुस्कान ही दिखाई। जिन्हें हाथो से पालने को इतने ध्य…
मुक़द्दस घड़ी हैं 17 - कविता - कर्मवीर सिरोवा
सर्द हवा का सुरूर, धनक की ये ग़ज़ब पैहन छाई हैं, आँखों में चमक लबों पे गीत वाह क्या बहार आई हैं। मिरे तसब्बुरात में जो तितली उड़ रही थी …
शादी या सौदा - कहानी - गुड़िया सिंह
आज रश्मि को देखने लड़के वाले आ रहे थे, घर मे सुबह से ही उनके स्वागत की तैयारियाँ चल रही थी। मम्मी ने बताया कि बेटा जल्दी से तैयार हो जा…
बाल विवाह: एक अभिशाप - कविता - शैलजा शर्मा
नारी अपने आईने को, ना बनने देना ख़ुद जैसा। जो होता रहा साथ तेरे, ना होने देना अब वैसा।। ना बनने दो उसको कठपुतली, तुम काजल बिंदी तिलक लग…
अल्हड़ बारात - लघुकथा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मोहन बहुत ही मेधावी छात्र था। उच्चतम शैक्षणिक सफलता के बाद भी उसे योग्यतानुसार जीविका न मिल सकी। परिवार की स्थिति दयनीय और बड़े परिवार …
पच्चीस से माथा-पच्ची - व्यंग्य कथा - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
हमारे यहाँ शादी हो समारोह हो या फिर हो तेरहवीं की दावत, जलवे जब तक तलवे झाड़ के न हो तब तक स्वर्गवासी आत्मा को भी शांती नही मिलती है। अ…
दुल्हन - कविता - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
मेहँदी भरे रचे हाथ और किये सोलह शृंगार। मन में उथल-पुथल कि जाने कैसा होगा ससुराल।। नाजुक मन है, नाजुक तन है, और है दिल में भाव अपार। …
डोली चली जब - कविता - अंकुर सिंह
डोली चली जब बाबुल घर से, माँ बोल उठी अपनी सुता से। हुई पराई अब तुम बेटी, नाता तुम्हारा अब उस घर से।। तात कह रहे अब सुता से, तुम पराई ह…
मुक़म्मल जहान हैं - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
मेहमाँ तिरे आने से जीवन में आया मिठास हैं, ये शादी का लड्डू जीवन में लाया उल्लास हैं। कहते हैं ये लड्डू जो खाए वो पछताए होत हैं, तुझ स…
वरमाला - कविता - अंकुर सिंह
जयमाला पर जब तुम मिलोगी, तुम्हारे हाथों में वरमाला होगी। नज़र झुकाए प्रिय तुम होगी इशारों से हममें सिर्फ बातें होंगी।। तुम्हारी सहेलिया…
परिणय सूत्र - कविता - विनय विश्वा
देखा देखी प्रथम चरण हौ दूजा है बरियाती तिजा में दुलहिन घरे आई निज संसार छोड़ी आई। एक भरोसा तुझसे है प्रिये तू संसार है मेरा दो कुटूंब …
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