संदेश
मजबूर-सी औरत - कविता - दिलीप कुमार चौहान 'बाग़ी'
पीठ पर बाँधकर दुपट्टे से सुला रही थी अपने दुधमुँहे बच्चे को अपने नर्म हाथों से थपथपाकर मानों धरती को जगा रही थी। मिट्टी को पसीने से सा…
मज़दूर - कविता - राज कुमार कौंडल
हर सुबह उठकर जीवन की तलाश में जाता हूँ, कुदाल फावड़ा कस्सी बेलचा हैं मेरे संगी साथी, ये मेरे संग और मैं इनके संग प्रीत निभाता हूँ। धोत…
मेरा दुःख मेरा दीपक है - कविता - गोलेन्द्र पटेल
जब मैं अपने माँ के गर्भ में था वह ढोती रही ईंट जब मेरा जन्म हुआ वह ढोती रही ईंट जब मैं दुधमुँहा शिशु था वह अपनी पीठ पर मुझे और सर पर …
मिहनत की किलकारियाॅं - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
उषाकाल खिलती किरण, ख़ुशियाँ ले भू धाम। मिहनत की किलकारियाॅं, प्रकृति हॅंसी अभिराम॥ फैली चहुँ दिस लालिमा, नव प्रभात अरुणाभ। उद्योगी म…
मेहनतकशों की पुकार - गीत - श्याम सुन्दर अग्रवाल
भैया रेऽऽऽऽऽऽ भैया रे हल ना रुके, रुके ना हँसिया रेऽऽऽ, भैया रे। रूठ जाए मेघा तो रुठ जाने देना डूब जाएँ तारे तो डूब जाने देना बूँद से …
पुत्र का संदेश - गीत - अभिनव मिश्र 'अदम्य'
ओ चतुर कागा! हमारे गाँव जाना। पुत्र का संदेश उस माँ को सुनाना। मातु से कहना कि उसका सुत कुशल है, याद वो करता उन्हें हर एक पल है। छोड़ द…
निराला जी की मज़दूरिन - कविता - रमाकान्त चौधरी
कितनी ही सड़कों पर बिछा उसका पसीना है, मगर क़िस्मत में उसकी आँसुओं के संग जीना है। किन-किन पथों पर उसने कितना पत्थर तोड़ा है, मेहनत से…
रिक्शेवाला - कविता - आदेश आर्य 'बसंत'
मैं रिक्शेवाला, खड़ा टकटकी देख रहा, नित सड़क पर आने-जाने वालों को। हूँ करता सम्मान सभी का, अपनी रोजी-रोटी कमाने को। कुछ देख कर मुझक…
श्रम की अद्भुत मिसाल किसान - कविता - अर्चना कोहली
श्रम की अद्भुत मिसाल किसान कहलाते हैं, निर्धन-धनी सभी की क्षुधा शांत करते है। जी-तोड़ मेहनत कर ख़ुशहाली धरा पर लाते, फिर भी अधिकतर ही अ…
मेरा किसान - कविता - डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव
श्रम बिंदु बहता जाए, काम वह तो करता जाए। सर्दी, गर्मी या हो बरसात, मेहनत करता है दिन-रात। खेतों में वह अन्न उगाता, अन्न तभी हमें मिल प…
मेरे देश का मजदूर - कविता - हरिराम मीणा
मजदूरों की ताकत जानो, उनकी शक्ति को पहचानो। तुम खाते हो बिरयानी, वह क्या जाने पकवान को।। मत भूलो उनके वादे, वह होते हैं सीधे-साधे। खुद…
श्रम प्रेम - कविता - विनय विश्वा
ज्येष्ठ की तपती भरी दोपहरी श्याम सलोनी रुप सुनहरी माथे पे है पगड़ी धारी गुरु हथौड़ा हाथ है भारी। मुख मंडल की छटा निराली हर प्रहार है …
श्रम ही ईश्वर है - कविता - सुधीर कुमार रंजन
हां, आज़ सबके साथ, मैंने भी जश्न मनाए, खुशियों के गीत गाए, लड्डुओं के भोग लगाए, मिट्टी के भी दीप जलाए, पटाखे भी जमकर फोड़…
श्रमकर्मी - कविता - सौरभ तिवारी
हम श्रमकर्मी बढ़ चले हैं अपनी मंजिल पाने को, भले राह में कष्ट हजारों पीने को, ना खाने को। श्रमबिन्दु है, साथी अपना क्यों करें गु…
हाँ मैं श्रमिक हूँ - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मैं श्रमिक हूँ हाँ मैं श्रमिक हूँ । समय का वह प्रबल मंजर , भेद कर लौटा पथिक हूँ । मैं श्रमिक हूँ हाँ मैं श्रमिक हूँ। अग्निप…
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