संदेश
ज़िम्मेदारी - संस्मरण - सुशील कुमार
एक बार की बात है, जब हमारे स्कूल में वार्षिक उत्सव का आयोजन किया गया। स्कूल के सारे विद्यार्थी ख़ुशी से झूम उठे। हमें भी बहुत ख़ुशी हुई।…
तोतली ज़ुबान वाला हर्ष - संस्मरण - डॉ॰ शिवम् तिवारी
"तातू, तातू, आ गए मेरे तातू" सर पर बेतरतीब बिखरे बाल, बदन पर पुरानी टी-शर्ट एवं अधफटी नेकर पहने महज़ 5 बरस का बालक हर्ष मुझे …
पटरी पर खोज - संस्मरण - संगीता राजपूत 'श्यामा'
बात छोटी है लेकिन मन को लग गई और संस्मरण बन गई। क़रीब चौदह साल पहले हम अपने मायके कानपुर से अलीगढ़ आने के लिए रेलवे स्टेशन पर बैठ गए। ट्…
हस्ताक्षर - संस्मरण - संगीता राजपूत 'श्यामा'
कानपुर के जुहारी देवी गर्ल्स इंटर कॉलेज में वार्षिक समारोह था। बात तब की है जब हम कक्षा दस में पढ़ते थे। हमने मंच पर सितार वादन की प्रस…
डाँट - संस्मरण - महेन्द्र 'अटकलपच्चू'
मुझे याद है आज भी वो दिन जिस दिन मेरे पिताजी ने बुरी-बुरी गालियाँ देकर घर से निकल जाने को कहा था। बेरोज़गार था काम-धाम करता नही था। ऊपर…
लाॅकडाउन - संस्मरण - सरिता श्रीवास्तव "श्री"
लॉकडाउन अर्थात तालाबंदी। पिछले लॉकडाउन में मेरी छोटी बहन गर्भवती थीं उसका इलाज जिस डॉक्टर से चल रहा था वह दूसरे शहर की थीं। लॉकडाउन के…
वो रिश्ता जो छोड़ आया था - संस्मरण - भगवत पटेल
ज़िन्दगी बहुत बोलती है हमेशा कुछ न कुछ पाने की ख़्वाहिश में जितना पाती नहीं उतना छोड़ देती। चूंकि मेरा सेवा निवृत्त का समय नज़दीक है और …
और मैं बन गई मम्मा - संस्मरण - ब्रह्माकुमारी मधुमिता "सृष्टि"
गोधूलि बेला में, मैं ध्यान करने जा रही थी कि तभी मोबाइल की घंटी बजी, बेटू ने कहा "मम्मा मेरा सीजीएल का रिजल्ट आ गया, मेरा रैंक भी…
गर्मी की छुट्टियाँ - संस्मरण - मंजिरी "निधि"
आज विद्यालय में वार्षिक परिणाम लेने जाना था। हरे गुलाबी रंग के गत्ते पर परिणाम मिलते थे। वह परिणाम क्या है क्या नहीं कोइ मतलब नहीं हुआ…
धब्बे - संस्मरण - ममता शर्मा "अंचल"
मेरी दैवीय (मोटी सी) दैहिक संरचना को देख-देख कर कब मेरी बहन ने मुझे 'गोलू' और गोलू से 'गुल्लड़' की उपाधि से विभूषित कर …
सौन्दर्यस्थली कालाकाँकर - संस्मरण - विमल कुमार "प्रभाकर"
प्राकृतिक सौन्दर्य की सुरम्यस्थली कालाकाँकर में मैंनें अपने जीवन के सुखद दो वर्ष बिताएँ हैं। मैं बी.एच.यू से कालाकाँकर जब जा रहा था, त…
वैष्णो माता की यात्रा - संस्मरण - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सनः १९८७ ई. की बात है। मैं उस समय दिल्ली विश्व विद्यालय से पी. ऐच. डी. कर रहा था। शोध कार्य के क्रम में शिक्षण भ्रमण अवकाश के निमित्त …
कसौटियार: बहुआयामी व्यक्तित्व - संस्मरण - पारो शैवलिनी
चितरंजन के हिन्दी नाटक जगत में एक बहुआयामी व्यक्तित्व के रूप में स्वयं को स्थापित करने में सफल रहे व्यक्ति के रुप में मैं जिस कलाकार स…
पहली मुहब्बत - संस्मरण - संजय राजभर "समित"
सन दो हजार बारह में मैं सेलम (तमिलनाडु) में था। घर से बड़े भाई का फोन आया "तेरी शादी की लगन तय हो गई है। माँ तेरी शादी के लिए बहु…
अरमान जो पुरे न हुये - संस्मरण - कुन्दन पाटिल
एक अच्छे उदेश्य से शुरू किया कार्य कैसे बिच मे ही दम तोड देता है। यही समझाना शायद इस संस्मरण का उदेश्य है। हम कुछ सहकर्मी मित्रों द्वा…
ये कैसा श्रद्धा भाव - संस्मरण - सुधीर श्रीवास्तव
इस समय पितृ पक्ष चल रहा है। हर ओर तर्पण श्राद्ध की गूँज है। अचानक मेरे मन में एक सत्य घटना घूम गई। रमन (काल्पनिक नाम) ने कुछ समय …
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