संदेश
नायाब भिक्षुक - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
विद्यालय से पढ़ाकर घर लौटते समय अपने साथी आचार्य दीनू महोदय की सहमति चाहते हुए आचार्य पंकज ठहाके लगाते हैं और कहते हैं कि बच्चों को पढ…
ग़लतियों को समझ पाना - गीत - उमेश यादव
सुधरने को मन मचलना, साहस कहलात है। ग़लतियों को समझ पाना, हौसले की बात है॥ ग़लतियों से सीख लेना, श्रेष्ठतम सदज्ञान है। ग़लतियों से हारते…
असफलता से सीखें - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
सदा पराजय आलसी, व्यसन कलह संलग्न। मुफ़्तखोर निन्दक मनुज, दंगा हिंसा मग्न॥ अहंकार पद पा मुदित, मदमाता इन्सान। पराजय विचलितमना, खो विव…
अक्टूबर है जी जान लगा दो - नज़्म - प्रशान्त 'अरहत'
ये क्या है मौसम? बहाना कैसा? कभी तुम गर्मी कभी तुम सर्दी बता रहे हो! या काम से जी चुरा रहे हो? तुम लक्ष्य ठानो जो एक मन में तो उसको प…
सीख - कविता - नाथ गोरखपुरी
आँसू जब अंगार बनेगा, तन का मन का हार बनेगा। अंतस् में सुनापन साधे, समझो कि संसार बनेगा। जब जब पीड़ा गहरी होगी, ख़ुशियाँ रुक के ठहरी हों…
ग़लत-फ़हमी और समझदारी - लघुकथा - राहिल खान
एक बार एक सुनार की आकस्मिक मृत्यु के बाद उसका परिवार मुसीबत में पड़ गया उनके लिए भोजन के भी लाले पड़ने लगे। एक दिन मृत सुनार की पत्नी …
रेत की सीख - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
रेत के छोटे-छोटे कणों सा बनकर बिखरा हूँ, मैं पत्थर अपने जीवन की दुर्दशा से बहुत सिहरा हूँ, पर ख़ुश भी हूँ संग मैं तेरे, अगर रेत बना तो …
सीख गया हूँ मैं - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी
कुछ तो पीर पराई लेकर चलना सीख गया हूँ मैं, ज़माने की अनेक रुसवाई लेकर चलना सीख गया हूँ मैं। तुम जान सके थे न जानोगे, बस सब कुछ झूठा मान…
विषय, विचार और कामनाओं से मुक्ति ही स्वतंत्रता है - लेख - आर॰ सी॰ यादव
नीतिगत निर्णय लेना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। यह एक ऐसी नैसर्गिक प्रतिभा जिसके बिना पर मनुष्य अपने गुण-अवगुण, यश-कीर्ति, हानि-लाभ और …
मेरे बच्चों! - कविता - रुचा विजेश्वरी
मेरे बच्चों! जब तुम मेरी उम्र में पहुँचोगे, घर के साथ सुनने पड़ेंगे ताने समाज भर के... तुम सुनने की आदत डाल लेना, तुम्हे मिलेंगे कइय…
आपका दुश्मन कौन? - लघुकथा - गोपाल मोहन मिश्र
एक बहुत बड़ी कंपनी के कर्मचारी लंच टाइम में जब वापस लौटे, तो उन्होंने नोटिस बोर्ड पर एक सूचना देखी। उसमें लिखा था कि कल उनका एक साथी ग…
हृदय परिवर्तन - कहानी - अंकुर सिंह
"अच्छा माँ, मैं चलता हूँ ऑफ़िस आफिस को लेट हो रहा है। शाम को थोड़ा लेट आऊँगा आप और पापा टाइम से डिनर कर लेना।" अंकित ने ऑफ़ि…
पीढ़ी का अंतर - लघुकथा - मंजिरी 'निधि'
हैलो! कैसी है? तबियत तो ठीक है ना? रोहिणी ने कल्पना से पूछा। कल्पना बोली हाँ बस ठीक ही हूँ । बेटा-बहु बच्चों के साथ आज नखराली ढाणी गए …
अहंकार - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
अहंकार ने कई राजा महाराजा कर दिया बंटाधार। अहम ने ही नेता अभिनेता को और अनगिनत नर नारी को कर दिया तार तार। अहम ने ही रावण जैसे…
चलो जीना सीखें - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
चलो जीना सीखें उन्हीं से झुर्रियों भरे गालों से अधपके बालों से, अनुशासन के अनुभवों से चलो जीना सीखें उन्हीं से। ये खूबसूरत सांझ ढ़ली…
सीख अमिताभ बच्चन से - आलेख - अंकुर सिंह
बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ का जन्म 11 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (वर्तमान का प्रयागराज) जिले में हिंदी साहित्य के एक बड़ी हस्ती…
लॉकडाउन से मिलती सीख - कविता - अतुल पाठक
लॉकडाउन ने जीवन को इक आशा की किरण दिखलाई है लॉकडाउन में मानव के धैर्य की परीक्षा की घड़ी आई है लॉकडाउन को गम्भीरता से मानव को ले…
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