संदेश
सूर्यास्त को भी करें प्रणाम - कविता - गणपत लाल उदय
चलों आज हम ढलते हुए इस सूर्य को करें प्रणाम, साॅंझ हो गई संस्कारों व संस्कृति का करें सम्मान। भानु दिनकर भास्कर दिवाकर मार्तंड इसका न…
सूरज - हाइकु - आशीष कुमार
1. सूरज हूँ मैं प्रकाश बिखेरता तम मिटाता 2. सौर मंडल गतिशील रहता परिक्रमा में 3. ऊर्जा स्रोत हूँ संचरण करता जोश भरता 4. जीव जगत निर्भर…
मैं सूरज हूँ - कविता - राकेश कुशवाहा राही
मैं क्षितिज का डूबता सूरज हूँ, मैं क्षितिज का उगता सूरज हूँ। मैं डूब अँधेरी गुहाओं में कहीं, तारों को महत्ता देता रहता हूँ। चाँद सूरज …
बालहठ - कविता - सुनीता भट्ट पैन्यूली
साँझ की वेला में पहाड़ी के नीचे घास की बिछावन में लेटकर वह देखती निर्निमेंष सूरज की भावभंगिमा को कौतुहलता वश... सहसा सूरज उसके माथे पर…
खेले दिनमान - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
भोर हुई प्राची की गोद में खेले दिनमान! दिन उदय होते ही अँधेरा दूर हुआ! रात में नीड़ों में आराम भरपूर हुआ! दिन चढ़े सूरज ने कर दिया ध…
सूर्य की धरती - कविता - मनस्वी श्रीवास्तव
मैं धरती तू सूर्य मेरा... तेरे "प्रकाश" से चमक रही, नित हरित दूब सी महक रही, विघ्नों के विराम अवसर पर, शरद सा शीतल हुआ सवेरा…
आ सूरज हम साथ में खेलें - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
सदाचार कौलिक माणिक बन, जीवन में सूरज बन चमकें। सदाचार अरुणाभ चरित बन, नभ प्रभात सूरज बन दमकें। नव प्रभात सतरंग मुदित मन आ सूरज हम साथ …
सूरज कभी बीमार नहीं होता - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
सूरज कभी बीमार होकर थकता नहीं है, चलना ही उसकी नियत है, अगर सूरज थक गया तो धरी की धरी रह जाएगी सारी विरासत। सूरज से हमें प्रेरणा मिलत…
सूरज - कविता - डॉ. सरला सिंह "स्निग्धा"
दिनकर का मिलता है स्पर्श, धरती खिल खिल है जाती। आदित्य रश्मि की चादर से, अनुराग रवि का सतत पाती। सूरज की किरणें ये करतीं जग का जीवन है…
लौट चला है सूरज - गीत - आलोकेश्वर चबडाल
चल रे घर चल नाविक अब तो लौट चला है सूरज! आशाओं की किरणें लेकर निकला दूर गगन से, दशों दिशाओं को चमकाया उसने सधी लगन से। तू भी निकला आँ…
सूरजमुखी - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
सूरज की ओर मुँह किए खिल रहे, पीले-पीले सुंदर सूरजमुखी के फूल। भोर की पहली किरण निकलते ही, खिलखिला उठते सूरजमुखी के फूल। शरद रातों में …
अरुणोदय - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"
उषाकाल में- लालिमा से परिपूर्ण, प्रखर तेज, रक्त-वर्ण, अरुण! होते विकसित अरुणाचल में। हरे-भरे पर्वत-श्रंगों- के मध्य, लाल-बिंबफल सम, द…
सूरज का अभिनंदन - कविता - मयंक कर्दम
आसमान भी तरस गया, कोयल की आवाज सुनने को। धरती में पानी से भीग गई, कोयल के साथ गुनगुनाने को।। कलियाँ भी खिल गई, सूरज को मुख दिखलाने क…
अदला बदली - कविता - डॉ. अवधेश कुमार अवध
सुबह जगाने आता सूरज, शाम सुलाने आता चंदा। गर अदला-बदली हो जाए, झूम - झूमकर गाए बंदा।। पता नहीं सूरज को निश दिन, इतनी सुबह जगाता …
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