संदेश
मानवता बेहाल - कविता - ममता शर्मा 'अंचल'
घर के पीछे आम हो, और द्वार पर नीम, एक वैद्य बन जाएगा, दूजा बने हकीम। पीपल की ममता मिले, औ बरगद की छाँव, सपने आएँ सगुन के, सुख से सोए ग…
तापमान - कविता - डॉ॰ सिराज
धरती जल रही है, गर्मी हदें पार कर रही हैं। मनुष्य ख़ुद को बचाने के उपाय तो ढूँढ़ लिया है, लेकिन प्रकृति को बचाने का विचार विलुप्त है। क…
मँझधार फँसी नैया - गीत - उमेश यादव
मँझधार फँसी नैया, उद्धार करा देना। जीवन की कश्ती को, प्रभु पार लगा देना॥ सुख-दुःख ही जीवन है, मन को समझाना है। संघर्ष भरा बीहड़ वन, …
संकटों के साधकों - कविता - मयंक द्विवेदी
हे संकटों के साधकों अब इन कंटकों को चाह लो समय दे रहा चुनौती जब कुंद को नयी धार दो वार पर अब वार हो और प्रयत्नों की बौछार हो गा रही ह…
ज्ञान दीन - घनाक्षरी छंद - महेश कुमार हरियाणवी
उसे घर से निकाला घर जिसने संभाला। पढ़े-लिखे बगुलों का काला किरदार है। माया जिन पे चढ़ादी देह अपनी लुटादी। बोलियाँ वे बोलते की पैसा सरदार…
स्वार्थी मनुष्य - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा
मानव ने पूरी धरती पर, आधिपत्य है जमा लिया। पूरी पृथ्वी पर मानव ने, बस अपना घर बना लिया॥ यद्यपि ईश्वर ने मानव के– साथ और भी भेजे थे। पश…
पर्यावरण - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
चलो बचाएँ प्रकृति धरा को, वृक्षारोपण मिल साथ करें। बाढ़, भूकम्प तूफ़ाँ कहर ताप, पर्यावरण प्रदूषण मुक्त करें। हवा सलिल विषाक्त बह रह…
अहसास - कविता - सुनीता प्रशांत
छोड़ आई जो माँ की गली वो गली गुम गई है वो राह तकती दो आँखें हमेशा के लिए बंद हो गई हैं वो मोहल्ला भी नहीं रहा वो लोग भी न जाने कहाँ ग…
किसी पुस्तक के किसी पन्ने पर - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
किसी पुस्तक के किसी पन्ने पर, दिखाई दिया, एक कतरन नुमा काग़ज़। लिखा था कल क्या क्या, सामान लाना है, घर चलाने को। शायद जेब इसकी इजाज़त नह…
क्या तुम नहीं जानते - कविता - बिंदेश कुमार झा
क्या तुम नहीं जानते पर्वतों के पीर को, व्याकुल संसार के संपन्न तस्वीर को। क्या तुम नहीं जानते जलती हवा के शरीर को, जो दौड़ रहा है गाड़ि…
संबंधों की सार्थकता - कविता - प्रवीन 'पथिक'
कथा की प्रासंगिकता, कथ्य के प्रभावशाली होेने से है। शब्दों का जीवंतता, गहरे भाव बोध से होता है। जीवन की अर्थग्राह्यता, मुक्ति की दिशा …
चल मोहब्बत लिखते हैं - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
एहसास के पन्ने पर चल मोहब्बत लिखते हैं और बनाते हैं कुछ नोट काग़ज़ के ख़रीद फ़रोख़्त के इस मौसमी दौर में मैं तुझे ख़रीदता हूँ तूँ मुझे …
सुनो तनिक राधा सखी - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
सुनो तनिक राधा सखी, लाओ मधुरिम हाथ। गाओ मुरली आज तू, मैं हूँ गैया साथ॥ लीलाधर यशुमति लला, समझ रही तुझ चाल। मैं तेरी जीवन सखी, नहीं …
संग चलें हम बुद्ध हो जाएँ - गीत - उमेश यादव
उर में करुणा, प्रेम मगन मन, तन से हम सेवा कर पाएँ। संग चलें हम बुद्ध हो जाएँ, संग चलें हम बुद्ध हो जाएँ॥ भोग विलासिता को त्यागना, जीवन…
मज़दूर - कविता - राज कुमार कौंडल
हर सुबह उठकर जीवन की तलाश में जाता हूँ, कुदाल फावड़ा कस्सी बेलचा हैं मेरे संगी साथी, ये मेरे संग और मैं इनके संग प्रीत निभाता हूँ। धोत…
हे राम! तुम्हें उठना होगा - कविता - तेज प्रकाश पांडे
इस कुरूक्षेत्र के प्रांगण में, पांचजन्य के वादन में। इस धर्मक्षेत्र के संगम में, इस कर्मभूमि के आँगन में। उस पांचाली के आँचल में, वृको…
कोशिश तो कर - कविता - रवींद्र सिंह राजपूत
क्यों रुके हैं ये क़दम तेरे? तू चलने की कोशिश तो कर, माना की जो न मिल सका उसके लिए अफ़सोस है परन्तु तू आगे बढ़ने की कोशिश तो कर। मंज़िल ते…
पुरुष - कविता - वंदना गरूड़
पुरुष आधार है, पुरुष संबल हैं स्त्री का, पुरुष भविष्य है आने वाले कल का, बचपन से होती है, पुरुष से कई उम्मीदें, बुढ़ापे तक दे जाता है …
तुम्हारे साथ - कविता - प्रवीन 'पथिक'
तुम्हारे साथ, चलना चाहता हूॅं, कुछ क़दम। ठहरना चाहता हूॅं, कुछ क्षण। बताना चाहता हूॅं, अपनी जिजीविषा। डूबना चाहता हूॅं, तुम्हारे रंग मे…
महारथी कर्ण - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
श्रापों और छलों के मध्य, फँसा था वह वीर महान, सूर्यपुत्र कर्ण की गाथा, हर युग में अद्वितीय प्रमाण। धरती का पुत्र, राधा का लाड़ला, धर्म…
माँ गंगे - कविता - आनंद त्रिपाठी 'आतुर'
दुनिया में जब व्यभिचार है तो मैं भला जाऊँ कहाँ, जो तन व मन के कष्ट हैं तेरे सिवा बतलाऊँ कहाँ। तू मातु गंगे पूर्ण है जड़ चेतनों को तारत…
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