संदेश
विपदा गढ़ी हुई है - कविता - कोमल 'श्रावणी'
ज़रा आज मैं इठलाती हूँ तुम्हें शौक़ से बतलाती हूँ। रणक्षेत्र की भूमि सजी हुई है, आग ज्वाला रण खड़ी हुई है। झूठे गान गूँज रहे, देखो तो व…
आव्हान - कविता - सुनीता प्रशांत
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ क्या आशय समझूँ मैं इसका मज़ाक बन रहा मेरे जीवन का हे द…
रच दे पौरुष राष्ट्र हित - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
रचना कविता काकिली, करे वक्त का गान। दशा दिशा सुख दुख यथा, करती कर्म बखान॥ नवप्रभात नव प्रगति पथ, रचो कीर्ति अभिराम। क्या पाया क्या …
श्राद्ध पक्ष की प्रासंगिकता - लेख - सुशील शर्मा | पितृपक्ष पर लेख
यह शब्द 'श्रद्धा' से बना है। ब्रह्म पुराण (उपर्युक्त उद्धृत), मरीचि एवं बृहस्पति की परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि श्राद्ध एवं श…
पूर्वजों को नमन - कविता - आर॰ सी॰ यादव | पूर्वजों पर कविता
नमन वंदन है उन पुरखों को जो छोड़ गए इस माटी को। श्रद्धा सुमन अर्पित करके, जीवित रखें परिपाटी को॥ जिनकी गोद में पले बढ़े हम, आज हमारे ब…
जिस दिन समझ लोगे - गीत - प्रमोद कुमार
जिस दिन समझ लोगे मेरे प्यार को तुम, मज़ा ज़िंदगी का आने लगेगा। आँखों में सपने सजने लगेंगे, नशा बेख़ुदी का छाने लगेगा। अँखियों के रस्ते से…
आपके जन्मदिवस पर - कविता - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण' | जन्मदिन पर कविता
वन्दनवारों से सजी आज, वीथी में धूम तुम्हारी है। मंगलकारी हो जन्मदिवस, ऐसी अभिलाष हमारी है॥ दिनरात चौगुनी बढ़ती हो, सम्मान तुम्हारे साथ…
कवि का अस्त नहीं होता है - कविता - राघवेंद्र सिंह
विविध ऋचाओं को रचकर भी, कवि अभ्यस्त नहीं होता है। रवि का अस्त तो हो जाता है, कवि का अस्त नहीं होता है। हर क्षण, प्रतिपल नवल चेतना, अंत…
हमने देखी हैं - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'
कितनी लाते-घातें हमने देखी हैं, जीवन की शह-मातें हमने देखी हैं, दुःख को सहते लोग अकेले देखे हैं, सुख के संग बारातें हमने देखी हैं। उजल…
उजला उजला कहना - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
थोड़ी देर ठहर कर, पुराने कपड़े पहर कर। उजला उजला कहना, अँधेरे से सहम कर। यही जीवन की अन्दुरूनी बातें। मित्रों की संगठित घातें। अकेलेप…
दिव्या - कविता - प्रवीन 'पथिक'
अंधेरे के सिवा, जीवन में कुछ नहीं है। सुख, आनंद, आह्लाद, सौंदर्यता कुछ भी तो नहीं है। भय मिश्रित आशंका, बेचैनी और अंतर्द्वंद से अच्छाद…
कहो जो है दिल में बात - नज़्म - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
कहो जो है दिल में बात, उनके पयाम से पहले, मत सोचो मोहब्बत में कुछ भी अंजाम से पहले। दिल की बात दिल में न रह जाए हसरत बनकर, जी ले तू भी…
देश का आधार हिंदी - कविता - राजधर अठया
पद्म का शृंगार हिंदी, गद्य का विस्तार हिंदी, भावों को दे शब्द अनेक, शब्दों का भंडार हिंदी। पढ़ने-लिखने में सरल हिंदी, वाणी में निर्मल …
मैं हिंदी हूँ - कविता - सुनीता प्रशांत
सबकी जानी पहचानी सबकी प्यारी अपनी अपनी भावना मैं मन की भाषा मैं जन जन की व्यक्त मैं, अभिव्यक्त मैं सार मैं, अभिसार मैं सर्व साधारण का…
मातृभाषा अपनी हिंदी - कविता - आर॰ सी॰ यादव
मातृभाषा अपनी हिंदी, वेद अवतरित वाणी है। उन्नति का आधार यही है, जिससे जुड़ा हर प्राणी है॥ रंग-रूप वेषभूषा से हटकर, यह संविधान की बिंदी…
हिन्दी दिवस - कविता - डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा'
हिन्दी बन जन मानस की अति प्रिय भाषा। तार दिलों के जोड़ने की जगाती है सबमें आशा। सभ्यता-संस्कृति की जो बताती है सबको परिभाषा। निराली लि…
पली बढ़ी शृंगारित हिन्दी - कविता - राघवेंद्र सिंह | हिंदी भाषा पर कविता
संस्कार की मृदु सुगंध में, पली बढ़ी शृंगारित हिन्दी। संवेदित, उत्कृष्ट व्याकरण, में लिपटी उद्धारित हिन्दी। शुभ्र, श्वेत अरविन्द कुसुम …
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