संदेश
आँखों में नमी हैं - कविता - कर्मवीर 'बुडाना'
क्यूँ जा रहे हो यार, मुझमें क्या कमी हैं, झूठा नहीं हूँ मैं, देख, आँखों में नमी हैं। मेरे दिल में बह रही प्रेम की ठंडी बयारें, फिर भी …
इन चक्षुजल की वाणी है मौन - कविता - अनमोल
इन चक्षुजल की वाणी है मौन दबकर स्वर प्रवाहित जग में बाँध दिया है बंधन मुझमें, हूँ दूर कैसे, बस निज अश्रु रहे सदा सह पग-पग में; ले मृसढ…
राहों का अकेलापन - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
आसमान को देखूँ, पर रंग सभी धूमिल हैं, धरती से पूछूँ तो उत्तर बड़े निर्जीव हैं। हवा की सरगम भी अब शोर सी लगती है, मन की हर परत पर बस पी…
पछतावा - गीत - संजय राजभर 'समित'
आज बहुत पछताता हूॅं मैं, नाहक उसे रुलाया था। वो थी सच्ची प्रेम दिवानी, आख़िर क्यों ठुकराया था? लिए निवेदन घुटनों के बल, बाॅंवरी गिड़गिड…
चक्रव्यूह - कविता - अनिल पुरबा 'अहमक'
रास्तों में कई सवाल मिले, कोई पुछे कब, कोई पुछे कौन, कोई पुछे कैसे, कोई पुछे कहॉं... इन सवालों के चक्रव्यूह में फँसा मैं, कभी जयद्रतों…
शब्दों में मान मर्यादा - कविता - सीमा शर्मा 'तमन्ना'
शब्दों में ढकी मान मर्यादा, शब्द बिना जीवन ये आधा। शब्द कहीं कम हैं कहीं ज़्यादा, शब्दों से ही सारी बाधा। शब्द ही तीर, शब्दों में पीड़,…
मेरी अधूरी कविताएँ - कविता - रामानंद पारीक
वो झाँकती हैं, डायरी के पन्नों से और ताकती है, मेरी क़लम और शब्दों को... अपने अधूरेपन की दुहाई देती, बार-बार बुलाती है मुझे... बहुत अरस…
सीता - मत्तगयंद सवैया छंद - सुशील कुमार
राम गए वनवास तो राम के साथ में साथ निभा गई सीता, प्रेम पुनीत चराचर में सचराचार को बतला गई सीता। सीय को सीय बनाया जो राम तो राम को राम …
यह दीप है - कविता - सेवाराम
यह दीप है भावनाओं का गीत है, अगर इसका बोध हो गया तो आत्मीय फ़तह है, हयात के द्वंद के पथ पर चल के अपने जीवन की सार्थकता समझ के कर ली संक…
रुकना तेरा अंत नहीं है - कविता - रूशदा नाज़
सपने को उस ऊँचाइयों तक देखा था मैंने, खग को उड़ते देखा था, पंछियों की भाँति उड़ान भरना चाहते दूर तलक फिर, निराशाओं ने मुझे ऐसा घेरा भी…
जब ख़ुद से मेरी पहचान हो - कविता - अनुराधा सिंह
अतीत की गहराइयों में ज़िंदगी के गोपनीय चेहरों को चूम न जाने कितने सवालों के जवाब पूछे नश्वर शरीर के नश्वर रिश्ते ज़िंदगी भी ख़्वाबों के ख़…
उठो कवि - कविता - आनंद त्रिपाठी 'आतुर'
फूलों की मकरंद है छाया हर्ष अपार उठो कवि इस भोर में लिखो नवल शृंगार लिखो नवल शृंगार प्रेम के इस उपवन में हो कोई न द्वंद कभी इस चंचल मन…
सीने से जो लगाता था तस्वीर क्या हुई - ग़ज़ल - ममता गुप्ता 'नाज'
सीने से जो लगाता था तस्वीर क्या हुई, दिल में बसी थी तेरे जो वो हीर क्या हुई। लेने लगे हैं काम ज़ुबाँ से वो आजकल, उनकी निगाहे नाज़ की शमश…
मायूस - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
गिरी अचानक आपदा, भाग्य रहे हम कोस। धरे हाथ पर हाथ हम, करते बस अफ़सोस॥ मिले राह गुमराह को, नई सीख हर हार। बने धीर साहस सबल, मिले धार पत…
झारखंड के माटी - खोरठा कविता - विनय तिवारी
झारखंड के माटी दादा ,पूजे के समान रे, झारखंड राइज हामर देसेक सान रे, देसेक सान ऐ दादा, देसेक सान रे। देसेक सान ऐ बहिन देसेक सान रे॥ पह…
कभी सोचता हूँ मैं - कविता - डॉ॰ मुकेश 'असीमित'
कभी सोचता हूँ मैं, बैठा हुआ आँगन के इस कोने में, सूरज की किरणें भी जहाँ लाज के पर्दे से झाँकती हुई आती हैं। जहाँ हवाओं की सरगम पेड़ों…
कविता तुम हो चिर-परिचित - कविता - राघवेंद्र सिंह
किसी अपरिचित प्रांगण में छाया-सी बनती हो श्यामल। किसी आर्द्र चितवन को आकर, वायु-सी करती हो निर्मल। स्मृतियों की प्राण निधि तुम, तुम नि…
कशमकश - कविता - प्रवीन 'पथिक'
अजीब कशमकश है यादों की! जिनकी जड़ें गहरी होती हैं; वह टूटता है गहराई से। ऑंखों में तूफ़ान; हृदय में विचारों की आँधी; मन में कल्पनाओं का…
अब फिर घिर आए बादल भी - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
अब फिर घिर आए बादल भी, उन यादों की बून्द लिए। बहते हैं सावन भादों से, देख रहे थे आँसू भी जैसे पथ कईं रातों से। इधर ख़ुशहाली ने जैसे न…
औरों की तरह - कविता - निखिल 'प्रयाग'
औरों की तरह हम तुम्हें नहीं देना चाहते साज शृंगार की वस्तुएँ... हम तो दे सकते है तुम्हें; 'किताबें' और शुद्ध सत्य तथा शास्वतत…
लड़की - कविता - सुनीता प्रशांत
वो हँसती है हँसने दो, दिल खोलने दो न जाने कब से हँसी नहीं न जाने फिर मिलेगी ख़ुशी यही पंख उसे अपने खोलने दो उसे मुक्त आकाश में उड़ने द…
मेरा मध्यप्रदेश - गीत - सुशील शर्मा
सदा वत्सले रत्न सुगर्भा मेरा मध्यप्रदेश। मातु नर्मदा इसकी रक्षक यह है रम्य निकुंज। भारत का यह हृदय सुकोमल स्वर्णपुष्प रवि पुंज। भाषा ब…
शायद यहाँ अब कोई हमारा नहीं - कविता - मयंक द्विवेदी
(घर के बुज़ुर्गों के मृत्यु हो जाने के बाद घर की स्थिति पर रचना) अब आँगन की चिड़ियों को दाना देता नहीं इन पंछियों को अब कोई खिलाता नहीं …
विशेष रचनाएँ
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