संदेश
अभय - कविता - विजय कुमार सुतेरी
यह कविता महाकुंभ प्रयागराज में वर्तमान में युवाओं से लेकर हर भारतीय और सनातन संस्कृति का अनुकरण करने वालों की बीच आकर्षण के केंद्र बने…
प्रार्थना - कविता - महेन्द्र 'अटकलपच्चू'
स्वर्गीय पिता, मेरे हाथों को खोलिए उदारता पूर्वक देने के लिए! मेरी सहायता कीजिए मैं हमेशा स्मरण रख सकूँ "लेने से देना धन्य है!&qu…
गागर में सागर - कविता - सोनू सागर 'रूस्तमपुरी'
गागर में सागर मिली करके ख़ूब यत्न। मिला हमको लक्ष्मीस्वरूपा एक रत्न॥ रहते हैं हम अपने कार्यों में ही मगन। करते हैं कठिन कार्य, लगा कर ल…
बन ठन निकल चला मैं - नवगीत - पंकज देवांगन
बन ठन निकल चला मैं आरज़ू को ले चला मैं दोपहरी की धूप में थका हारा गिर पड़ा मैं बन ठन निकल चला मैं ख़ुशियाँ की दो घड़ी है फिर यह किसको क्या…
मैं घोड़ी क्या चढ़ गया - कविता - मयंक द्विवेदी
मैं घोड़ी क्या चढ़ गया रे मेरे दिन फिर गए ऐसे राहु-केतु वक्री हो गए सारे फन फुला के बैठे। मैं घोड़ी क्या... सुनो सुनो की सुन-सुन कर अब का…
माँ - कविता - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
अंधेरों के जानिब से, जो रोशनी छीन लाए वो माँ होती है। अपने हिस्से का निवाला, जो तुम्हे खिलाए वो माँ होती है॥ धूप में आँचल से छाया करदे…
उसके आने के बाद - कविता - रूशदा नाज़
उसके आने के बाद, मैंने सीखा प्रेम करना निस्वार्थ प्रेम हर सुख-दुख में साथ दिया हर सुन्दर स्मृतियों को जीवंत बनाए रखा। उसके आने के बाद …
सूर्यास्त को भी करें प्रणाम - कविता - गणपत लाल उदय
चलों आज हम ढलते हुए इस सूर्य को करें प्रणाम, साॅंझ हो गई संस्कारों व संस्कृति का करें सम्मान। भानु दिनकर भास्कर दिवाकर मार्तंड इसका न…
महाकुम्भ - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
महाकुम्भ का शुचि महापर्व आया भक्ति सागर में खुद आज संगम नहाया, श्रद्धालु जन की ग़ज़ब भीड़ लाया, भक्ति सागर में ख़ुद आज संगम समाया। महाकु…
अवसाद - कविता - अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श'
स्मृतियाँ क्षीण होती दृष्टि में, जैसे सांध्य की लालिमा जल में समा जाती है, हर आकांक्षा, हर स्वप्न, तृण-तुल्य हो बिखर गया है। आशा, जो क…
फिरती घिरती छाया - कविता - कर्मवीर 'बुडाना'
जिसे भी हैं अपना उल्लू सीधा करना, वो दिखाएगा हमें कोई फ़रेबी सपना। बड़ा इल्म हैं ये वक़्त भरोसे का नहीं, रिश्तों में न रहा दम, टूटा हर अप…
आओ कुल्हड़ में चाय पीते हैं - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
आओ कुल्हड़ में चाय पीते हैं चन्द लम्हें सुकूँ के जीते हैं क्या बताएँ ए दोस्त तेरे बिन सारे लम्हात रीते-रीते हैं रम औ' व्हिस्की तुम…
समझ नहीं सका - कविता - प्रवीन 'पथिक'
समझ नहीं सका मैं, रिश्तों की बुनियाद का आधार! ऑंखों से बहता प्रेम या अंतःकरण से उमड़ता सागर। अन्यमनस्क सा सोचता हूॅं; प्रेम अभिव्यक्ति…
मेरे दिल की बस्ती में - गीत - रमाकांत सोनी 'सुदर्शन'
फ़ुर्सत हो तो आ जाना तुम मेरे दिल की बस्ती में। मैं राही हूँ बहारों का तुम बैठ जाना मेरी कश्ती में। मेरे दिल की बस्ती में मधुर तराने गी…
जीवन की फिर नई किरण है - कविता - राजू वर्मा
जीवन की फिर नई किरण है, कुछ कामयाबी के सपने हैं, हर दिन संघर्ष भरा है, राहों में कुछ अपने हैं, गिर कर चलना चलकर गिरना, जीवन की बस राह …
अंतरंग - कविता - विक्रांत कुमार
बावला मन ने एक संबंध गढ़ा जैसे राख की ढेर पर चूसे हुए आम की गुठली का अंकुर नया डंठल बन उग आता है लालच के अंतरंग में! अपार जटिलताओं को …
युवा दिवस - दोहा छंद - ओम प्रकाश श्रीवास्तव
युवा दिवस है मन रहा, हिन्द देश में आज। संत विवेकानंद का, जन्मदिवस मय साज॥ गर्व सन्त पर कर रहे, भारतवासी आज। इसी सन्त ने हिन्द की, रखी …
ज़िम्मेदारी - संस्मरण - सुशील कुमार
एक बार की बात है, जब हमारे स्कूल में वार्षिक उत्सव का आयोजन किया गया। स्कूल के सारे विद्यार्थी ख़ुशी से झूम उठे। हमें भी बहुत ख़ुशी हुई।…
प्रेम - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
प्रेम धरा है, प्रेम गगन है, प्रेम तपन है, प्रेम शयन है। प्रेम श्वास है, प्रेम प्राण है, प्रेम जीवन का संज्ञान है। किरणों जैसा कोमल स्प…
निराकार साकार प्रभु - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
निराकार साकार प्रभु, गुण निर्गुण अस्तित्व। भजे मनुज जिस रूप में, दिखे ईश व्यक्तित्व॥ लीलाधर लीला मधुर, सगुण रूप साकार। नर नारी बहु रूप…
भारत देश की महिमा - कविता - ओम प्रकाश श्रीवास्तव
भारत प्यारे देश के, अनुपम सारे साज। ज्ञान विश्व को बाँटता, यही पुरातन काज। यही पुरातन काज, खोज उत्तम हर करता। फिर सबको यह बाँट, हर्ष स…
एइ भात रे - खोरठा कविता - विनय तिवारी
ने जाइत देखलों, ने पाँइत रे ने दिन देखलों, ने राइत रे हामें तोर लेल की की नॉय करलों एय भात रे! एइ भात रे!! काँटा अइसन छातीं लागल कते ल…
शब्दनाद - कविता - सुशील शर्मा
मेरा कितना ही उपहास करो, मौन नहीं तोड़ूँगा। न अपनी संवेदना को छितराऊँगा, न ही अनुवादों में जीकर, मूल को भूलूँगा। मैं रचूँगा समाज की सृज…
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