संदेश
खँडहर-सा घर - कविता - निवेदिता
ख़ाली सा शहर, जिसमें एक खँडहर-सा घर। दरारों का जाल, आधी पूरी सी दीवार। टूटी-सी खिड़की पर तकती नज़र झाँकती सुनी राहों को हर पहर। हवा के ह…
वह आलिंगन चौबीस साल पुरानी है - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
कुछ गीली और चमकीली यादों में, तुम मेरी स्वप्न सुंदरी, मेरे सुनहले अतीत की नीली किरणें, वह उम्मीद से भरी आँखें, चाहना से भरी मटकती पुतल…
हरियाली कविताएँ - कविता - कर्मवीर 'बुडाना'
सागर की लहरों को उतरता देख यूँ लगता हैं जैसे कोई टूटा पंख हवा के झूले से लिपटकर कवि के हाथों को छूना चाहता हो, एक माली की तरह मैं इस ल…
इस जीवन के हर पृष्ठ पर - नवगीत - सुशील शर्मा
इस जीवन के हर पृष्ठ पर लिखे हुए उर के स्पंदन। तेरे अधरों की वँशी पर मेरे गान की लय होती हर पल हर क्षण तड़प वेदना भय बोती सकल आस के बंध…
अनकहे शब्द - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी
यह सच है, ज़िंदगी तेज़ी से आगे बढ़ती है, लेकिन इतनी तेज़ी से नहीं कि मैं इसकी दौड़ में ख़ुद को खो दूँ। अगर मेरी क़लम मुझे पुकारती है, तो मु…
चलो दोस्ती कर लें - कविता - निर्मल कुमार गुप्ता
चलो दोस्ती कर लें। द्बेष-भाव में,क्या रक्खा है? क्यूँ न, गुफ़्तुगू कर लें। चंद दिन की, ज़िंदगी में, फिर से कुछ, मस्ती कर लें। नफ़रत में…
कहाँ जाना है? - कविता - संजय राजभर 'समित'
अब मुझे अच्छा लगता है अकेलेपन से। मेरे साथी हैं टूटी-फूटी छप्पर बढ़े बाल-दाढ़ी मटमैले कपड़े रूखी-सूखी रोटियाॅं और अपनी कल्पनाएँ, चिंतन…
शिव विवाह शिवरात्रि में - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | महाशिवरात्रि पर दोहे
महशिवरात्रि पर्व शुभ, पावन फागुन मास। गौरी शिव परिणय दिवस, धर्म सनातन ख़ास॥ मिले शान्ति सुख सम्पदा, मिटे विघ्न दुख ताप। पूजें श्रद्धा भ…
नसीब अपना जला चुके हैं - ग़ज़ल - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
नसीब अपना जला चुके हैं, चराग़ कोई बुझा न पाए ग़मों का साया जो पड़ चुका है, वो अब कभी भी हटा न पाए उदास आँखों में रौशनी थी, मगर वो कब स…
व्यथा - कविता - अलका ओझा
मन की भी अपनी व्यथा है कभी ख़ुशियों में ख़ुश नहीं होता कभी ग़म में दुःखी होने से मना करता है पर मन दुःख में व्यथित रहता है बिना आँसू बहा…
बेटी - कविता - रामदयाल बैरवा
घूँघट नहीं, किताब थमा दो, नन्ही परी को पंख लगा दो, तोड़ दो ये झूठे बंधन, जो नारी को कहते अमंगल, जन्म से पहले प्राण गए, समाज बना हैं क्…
मजबूर-सी औरत - कविता - दिलीप कुमार चौहान 'बाग़ी'
पीठ पर बाँधकर दुपट्टे से सुला रही थी अपने दुधमुँहे बच्चे को अपने नर्म हाथों से थपथपाकर मानों धरती को जगा रही थी। मिट्टी को पसीने से सा…
जो जगमग मेरी दुनिया दिख रही है - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
जो जगमग मेरी दुनिया दिख रही है तुम्हारे नूर की ही रौशनी है भला दिखने की ये जद्दोजहद क्यों भलाई या बुराई कब छिपी है जो बदले पैंतरा हर इ…
समर अभी रुका कहाँ - कविता - मयंक द्विवेदी
ये मंद-मंद जो द्वन्द्व है जो मन के मन में चल रहा समर अभी रुका कहाँ समर अभी रुका कहाँ भीतर झंझावतों का शोर है बाहर चुप्पियाँ है साध के …
वो भावनाओं का समन्दर - कविता - सीमा शर्मा 'तमन्ना'
कभी-कभी बहुत मुश्किल होता है, वह सब कुछ कह पाना, जो इस मन के भीतर रहकर अनायास ही शोर मचाता है। होता है कभी बहुत व्याकुल और कभी-कभी होक…
खो रही दिशाएँ - कविता - प्रवीन 'पथिक'
खो रही है गौरैया, काल के धुँध में। सूख रहे हैं पौधें, जल के अभाव में। मर रही हैं मछलियाॅं, दूषित हुए तालाब से। भयाकुल हैं आम जन, दूसरो…
मन मर गया हो जैसे - कविता - शालिनी तिवारी
एक लड़की जो चहचहाती थी चिड़ियों-सी, अजीब-सी ख़ामोशी ओढ़े है। जिसे ज़िद थी भरी जवानी में बचपना जीने की, उसका बचपना एक ही ज़िंदगी में दो …
तुम - कविता - बापन दास
तुम चंदन का मानो वृक्ष हो, मैं उससे लिपटा नाग कोई! मैं काँपता तार सितार-सा हूँ, तुम उससे झरती राग कोई! तुम चंचल नैना मृग-सी हो, मैं कल…
समझाइश - बघेली लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
मौसी केर बियाह के उराओ म परदेस म पढ़त दीनू चार रोज़ पाछेन आइगा। चार रोज़ आगे बियाह होय का हबै पर दीनू का रौनक नहीं देखान। ओसे रहा नहीं ग…
चल! इम्तहान देते हैं - कविता - आलोक कौशिक
भय को भगाकर पंखों को फैला कर हौसलों को उड़ान देते हैं चल! इम्तहान देते हैं तू नारी है या है नर दिखा अपना हुनर श्रेष्ठ को सम्मान देते ह…
क्या ज़िंदगी थी - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
कुछ ज़मीं, कुछ आसमाँ कुछ मुस्कुराहटें और कुछ सामाँ कुछेक सिक्के, कुछ घूँट आब क्या ज़िंदगी थी जनाब। ख़ुशियों की... दस्तक की दरकार नासमझ-स…
एहसास - कविता - डॉ॰ कुमार विनोद
एक बूढ़ी स्त्री ने जब अपनी दवा की पर्ची के साथ अपने बेटे के तरफ़ एक मुड़ा-तुड़ा नोट भी बढ़ाया तो अहसास हुआ कि ये दुनिया वाक़ई बीमार है...! …
बुढ़ापा - कविता - राजेश राजभर
तितर-बितर भई डाली-डाली, झर गई सगरो पाती, चौथेपन की राह कठिन है– कौन जलाए साँझ की बाती। आँखों में सैलाब उमड़ता चढ़ता क़दम-क़दम अँधियारा– …
निराशा - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी
निराशा के लिए एक शब्दकोश है, उसकी ध्वनियाँ नुकीली हैं, उसकी लय असंगत है। और फिर भी, उसके कोलाहल में भी, मुझे सांत्वना का आभास मिलता है…
जातियों में बँटा हुआ देश - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
जातियों में बँटा हुआ देश गठ्ठर से अलग हुई उन लकड़ियों जैसा है जिन्हें कोई भी चाहे तब तोड़ सकता है बिना किसी परेशानी के। लेकिन हरेक लकड…
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर