संदेश
सरस्वती वंदना - दोहा छंद - सुशील शर्मा
मातु शारदा आप हैं, विद्या बुद्धि विवेक। माँ चरणों की धूलि से, मिलती सिद्धि अनेक॥ झंकृत वीणा आपकी, बरसे विद्या ज्ञान। सत्कर्मों की रीति…
बुद्धि विवेक सृजन की देवी - गीत - उमेश यादव
बुद्धि विवेक सृजन की देवी, ज्ञान का विस्तार है। प्रज्ञा माता, माँ गायत्री, आपकी जय जय कार है॥ नवयुग की अरुणोदय वेला, नवल सृजन का शंख ब…
वसंत ऋतु सर्वश्रेष्ठ - कविता - गणपत लाल उदय
यह वसंत ऋतु लाई फिर से प्यारी-सी सुगन्ध, ये प्रकृति निभाती सबके साथ समान सम्बन्ध। यह जीने की वस्तुएँ सभी को उपलब्ध कराती, शुद्ध हवा एव…
वसंत आगमन - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
शीत ऋतु, कुहरे, जाड़े का, सन्नाटे का हुआ अंत। प्रकृति करती शृंगार अरे! देखो आया प्यारा वसंत॥ देखा प्रकृति को आज सुबह, चल रही पवन थी मं…
रखकर तो देखो कभी - दोहा छंद - मनोज कामदेव
रखकर तो देखो कभी, सूरज से संबंध। फैलेगी संसार में, तेरी भी यश गंध॥ गली-गली में बिक रही, भूख बेबसी लाज। देख कबीरा ध्यान से, कितना सभ्य …
स्मृतियाँ अनिमेष - कविता - सुशील शर्मा
साँझ-सवेरे स्तब्ध, अनिमेष, निर्वाक् नाद-मय, प्लावन शिशु की किलकारी-सा। अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय लोच, उल्लसित, लहरिल वहाब स्नेह से आलिप…
अभिमत - कविता - राजेश राजभर
सत्य का सत्कार हो, भू-धरा पर मानवता का शृंगार हो, भू-धरा पर। रह न जाए आखिरी -पंक्ति विरान, जन-जन का सम्मान हो-भू-धरा पर। रेत भरी रस्म…
तुम्हारी तस्वीर - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
देखी जो मैंने तुम्हारी तस्वीर, छलक उठा मन, हुआ अधीर। मुख चंद्र-सा, नयन कजरारे, जैसे हो फूलों के बीच सितारे। अधरों पर मृदु मुस्कान खिले…
जीवन - मुक्तक - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
अरे! 'अंशुमाली' लघु जीवन फिर भी चलते जाना है। नंद नाले कंटक वन गह्वर में भी बढ़ते जाना है। जीवन के पन बीत रहे हैं फिर भी संबल …
अंधेरे, पनाह दो - कविता - कर्मवीर 'बुडाना'
एक ही जन्म में शिद्द्त से करो मोहब्बत, सातों जन्म साथ की मत माँगों सोहबत। बड़ी बे-रुख़ी से गर उसने दिल तोड़ दिया, दिल कहता हैं, अच्छा…
बस! रहो तुम मेरे पास प्रिये - कविता - प्रवीन 'पथिक'
जीवन क्या एक पतझड़ है! खिलना और बिखरना है, दुःख का तो आना जाना है। गिरना फिर उठकर चलना है। जब याद तुम्हारी आती है, आँखों में आँसू आते …
साजन आ जाओ - गीत - सुशील कुमार
लगे इक, दिन है बरस हज़ार कि साजन आ जाओ एक बार होठ की लाली कान का झुमका यौवन भरी हिलोरे साजन तेरे बिना ये सारा फीका है शृंगार कि साजन आ …
यह कुंभ यह स्वाभिमान है - कविता - राजू वर्मा
यह कुंभ यह स्वाभिमान है, ये सनातन संस्कृति और ज्ञान का विस्तार है, जहाँ पर दिखती मोक्ष की धारा, जहाँ पर बसती त्याग की ज्वाला, जहाँ संस…
पढ़ नुनू पढ़ रे - खोरठा कविता - विनय तिवारी
पढ़ नुनू पढ़ रे! आपन भबिस गढ़ रे! खाता-पोथी से नाता जोड़ मोबाइल देखे छोड़ रे पढ़ नुनू पढ़ रे... जे पढ़ल, आगु बढ़ल जिनगिक टुंगरी-पहार चढ़ल। सुख…
हमने फहराकर तिरंगा कर दिया ऐलान है - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी 'नितान्त'
हमने फहराकर तिरंगा कर दिया ऐलान है देख लो दुनिया ये ताक़त है हमारी शान है है हमें इश्क़-ए-वतन इस पर ये जाँ क़ुर्बान है हिन्द ही तो शान है…
गणतंत्र की गूँज - कविता - रतन कुमार अगरवाला 'आवाज़'
नव चेतना का पर्व गणतंत्र आया, भारत का गौरव चहूँ ओर छाया। छब्बीस जनवरी का दिन महान, संविधान का गा रहा गर्वित गान। लोकतंत्र की है अनमोल …
सपथ - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
सपथ आज गणतंत्र दिवस पर गाएँ गौरव गान तुम्हारा। मातृभूमि तुम अमर रहोगी जब तक गंगा-यमुना धारा। और अचल हिमगिरि सा उन्नत जब तक ज्योतित ध्र…
भारत का प्राकृतिक सौंदर्य - मनहरण घनाक्षरी छंद - राहुल राज
भारत निराला देश, देश में हैं सभी वेश, वेश भूसा जैसे संग, रंग की तरंग है। देश है कृषि प्रधान, धान गेहूँ पहचान, तान सीना खलियान, दान की …
हूँ लाल इस माटी का - गीत - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'
मातृभूमि की ख़ातिर, हाँ कुछ भी कर जाऊँगा। रहा अब तक था बेनामी, शान वतन की बढ़ाऊँगा। बनके काल रिपुदल का, पताका तिरंगा फहराऊँगा। हूँ लाल …
गणतंत्र तिरंगा प्यारा है - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
भारत मेरे प्राण समझ लो, भारत ही पौरुष मेरा है। देवों ऋषि सन्तों की धरती, नव शौर्य शक्ति जय धारा है। हरित क्रांति ऊर्जा भू उर्वर, कोषाग…
अपना हिंदोस्ताँ - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
जिसकी माटी भी मलयज से कमतर नहीं, देश जिससे यहाँ कोई बेहतर नहीं। जिसके मस्तक पे हिमगिरि सुशोभित रहे, जिसके चरणों को छूकर के सागर बहे। ज…
बेचैनी - कविता - अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श'
यह बेचैनी क्या है? अधूरी आकांक्षा? या पूरी होने का भय? मन की इस बेकली का अंत कहाँ? शायद कहीं नहीं। शायद यही उसका स्वरूप है— एक निरंतर …
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