संदेश
दर्शन की छाया - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'
जब एक व्यक्ति धूप में चलते-चलते थक जाता है तो वह फिर एक वृक्ष की छाँव में बैठ जाता है शान्ति और सुख का अनुभव करता है। वह व्यक्ति — तर्…
माँ की महर - देव घनाक्षरी छंद - पवन कुमार मीना 'मारुत'
माता ममतामयी मूरत मनोहर मान, मन-मन्दिर महान मध्य में महर-महर। मानवता मधुरता महानता महीश्वरी, माता मन मत दुखाओ दिल दहर-दहर। माता प्रेम …
बेलपत्र - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
"कितना कष्ट होता है जब जीवन विकल्पहीन निभने की अनिवार्यता माँगे" बारह वर्षीय चारु की माँ अपने घर सात साल बाद आई सखी माधुरी क…
पता ही नहीं चला - कविता - प्रवीन 'पथिक'
दो दिलों का मिलन, कब साँसों की डोर बन गई? पता ही नहीं चला। जीवन की ख़ुशनुमा शाम, कब सुहावनी रात बन गई? पता ही नहीं चला। उसी शाम तो तुमन…
तेरे चेहरे पर मेरी हरकत रहती है - ग़ज़ल - कर्मवीर 'बुडाना'
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तक़ती: 22 22 22 22 22 तेरे चेहरे पर मेरी हरकत रहती है यूँ मेरी आँखों में उल्फ़त रहती है धरती की…
हमनवाँ संग तेरे लम्हें ख़ुशगवार बन बैठे - ग़ज़ल - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े तकती: 22 22 22 22 22 22 2 हमनवाँ संग तेरे, लम्हें ख़ुशगवार बन बैठे दिल तुमसे लगा, ख़…
मझधार - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन'
मैं प्रेम की कश्ती हूँ, मेरा जीवन मझधार में है! हे प्रिय! तुम माँझी बनो, हमें चलना उस पार है! प्रेम न ठहरे सागर जैसा, कलकल-छलछल बहता र…
रंग न मन मोहा - कविता - गौरव ज्ञान
श्याम का रंग, साम क्यों? बाबरी बन राधा, मीरा से पुछी, मीरा बोली– ना जानु मा साम रंग, ना जानु मा गोरी, मोह तो मीरा हूँ दर्श की प्यासी,…
अंतर्मन की खोज - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
खोज रहा हूँ ख़ुद को भीतर, मौन लहर में गूँज समाई। भाव शिलाएँ चुपचाप खड़ीं, बूँद-बूँद रसधार बहाई॥ अंतःपुर की जाली झाँके, स्मृतियों की धूप…
है नारी हर युग में युग निर्माता - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया
ममत्व भाव पाने को जिसका, सदैव आतुर रहे स्वयं विधाता। शील, शक्ति, सौंदर्य समन्विता, है नारी हर युग में युग निर्माता। स्नेह सुधा बरसा कर…
हमदर्द - रूप घनाक्षरी छंद - पवन कुमार मीना 'मारुत'
मित्र-मित्र की कही जान जान ज़रा जवान, मेरे मीत-मीत का कठिन कर्त्तव्य कहान। वफ़ादार विश्वसनीय विवेकी विचारक, सच्चाई समझदारी संग सोचत सोहा…
मुझे नहीं चाहिए - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
मेरे पास कुछ भी नहीं है, जहाँ थोड़ी देर बैठ कर सुस्ता सकूँ न ईमानदार पसीने की महक न कोई सार्थक पंक्तियाँ कुछ निरर्थक शब्दों की आवाजाही …
नवयुग की हम नारी - कविता - प्रमोद कुमार
नव प्रभात अब निकल गया है, कटी रात अंधियारी, अब इतिहास बदलेंगे मिलकर, नवयुग की हम नारी। कालरात्रि दुर्गा बनकर हमने असुरों को मारा, चामु…
आत्म संवाद - कविता - अंजू बिजारणियां
ये जवानी का दौर, दूसरी ओर सफलता प्राप्ति का शोर। पड़ रहा मुझ पर मेरा ही ज़ोर। अपने आप में रहना भी चाहूँ, निकलना भी चाहूँ, छाया कोहरा चा…
माँ ने पढ़ी दुनिया - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन'
कभी कभी वो मुझे देर तक निहारती है, माँ मेरी परेशानियाँ पहचानती है। माँ पढ़ती है, मेरी आँखें, मेरा चेहरा और मन, वो जानती है हृदय की उलझ…
प्रसन्नता - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
गीत ख़ुशी के गाऍं जा हम, मन प्रसन्नता शहद सुधा है। शिरोवेदना दर्द निवारक, ग़म उदास मन ख़ुशी दवा है। सत्कार्य ध्येय जीवन सहचर, हर्ष सुधारस…
गिद्ध - कविता - मदन लाल राज
गिद्ध, नोंचने में सिद्ध। दूर-दूर तक प्रसिद्ध। आजकल वह भी सोचने लगा है। मुझ से अच्छा तो आदमी नोंचने लगा है। आकाश में अब बेचारा लुप्त प…
जीवन है अनमोल जगत में - कविता - रमेश चन्द्र यादव
जीवन है अनमोल जगत में, संभल कर क़दम उठाना रे। ग़लती कोई हो जाए एकबार, तो उसको ना दोहराना रे। मत सोचो तुम हो अकेले, नहीं कोई है साथ तुम्…
तेरी दुनियाँ में मुझको - नज़्म - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
तेरी दुनियाँ में मुझको, दिलकश कोई किरदार ना मिला ख़ुशामद के दीवाने हैं यहाँ, हुनर का जानकार ना मिला वफ़ा की उम्मीद क्या करें, कोई ज़र-प…
यथार्थ का गाँव - नज़्म - कर्मवीर 'बुडाना'
मेरे दिल में बसी हर बात एक निशानी है, बीता वो दौर पुराना, अब न आना-जानी हैं, तुम चाहे करो इशारें, नहीं दिल में चाहत हैं, माना हूँ कवि …
कविता - कविता - रोहित सैनी
कविता मुझे दवाई की तरह मिली सर दर्द हो या पेट दर्द या बुख़ार मैंने इसे गोली की तरह खाया और उलटी की तरह पेश आया हर बार इसके साथ अब जो कु…
देखो! ऐसा है हमारा बिहार - कविता - आलोक कौशिक
सकारात्मक सोच यहाँ की हृदय में करूणा और प्यार संघर्ष का साहस यहाँ पर कभी ना होती हौसलों की हार देखो! ऐसा है हमारा बिहार नयनाभिराम नदिय…
यूँ मत गुमशुम रहा करो - गीत - सुशील कुमार
कितनी बार कहा है तुमसे, यूँ मत गुमशुम रहा करो। जो भी हों अवसाद हृदय के, खुलकर मुझसे कहा करो॥ मन की स्मृतियों के मोती, मिलकर दोनों चुन …
आख़िरी मुलाक़ात - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी
इस बार वो गई मगर हर बार की तरह नहीं हर बार चली जाती थी मुझे पीछे छोड़कर मैं देखता रहता था उसे नज़रों से ओझल होने तक एक टूटी उम्मीद लेकर…
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर